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विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में राजदूत श्री विजय गोखले महोदय का सम्बोधन

भारत के 69वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति का संदेश
08/15/2015

Fellow citizens:

प्यारे देशवासियो :

1. हमारीस्वतंत्रता की 68वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, मैं आपका और विश्व भर के सभी भारतवासियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिकसुरक्षा बलों के सदस्यों का विशेष अभिनंदन करता हूं। मैं, अपनेउन सभी खिलाड़ियों को भी बधाई देता हूँ जिन्होंने भारत तथा दूसरे देशों में आयोजितविभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कार जीते। मैं, 2014 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी को बधाई देताहूं, जिन्होंने देश का नाम रौशन किया।

मित्रो :

2. 15 अगस्त, 1947 को, हमनेराजनीतिक स्वतंत्रता हासिल की। आधुनिक भारत का उदय एक ऐतिहासिक हर्षोल्लास का क्षणथा; परंतु यह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अकल्पनीय पीड़ाके रक्त से भी रंजित था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध महान संघर्ष के इस पूरे दौर मेंजो आदर्श तथा विश्वास कायम रहे वे अब दबाव में थे।

3. महानायकों की एकमहान पीढ़ी ने इस विकट चुनौती का सामना किया। उस पीढ़ी की दूरदर्शिता तथापरिपक्वता ने हमारे इन आदर्शों को, रोष और भावनाओं के दबावके अधीन विचलित होने अथवा अवनत होने से बचाया। इन असाधारण पुरुषों एवं महिलाओं नेहमारे संविधान के सिद्धांतों में, सभ्यतागत दूरदर्शिता सेउत्पन्न भारत के गर्व, स्वाभिमान तथा आत्मसम्मान का समावेशकिया, जिसने पुनर्जागरण की प्रेरणा दी और हमें स्वतंत्रताप्रदान की।। हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा संविधान प्राप्त हुआ है जिसने महानता कीओर भारत की यात्रा का शुभारंभ किया।

4. इस दस्तावेज कासबसे मूल्यवान उपहार लोकतंत्र था, जिसने हमारे प्राचीन मूल्योंको आधुनिक संदर्भ में नया स्वरूप दिया तथा विविध स्वतंत्रताओं को संस्थागत रूपप्रदान किया। इसने स्वाधीनता को शोषितों और वंचितों के लिए एक सजीव अवसर में बदलदिया तथा उन लाखों लोगों को समानता तथा सकारात्मक पक्षपात का उपहार दिया जोसामाजिक अन्याय से पीड़ित थे। इसने एक ऐसी लैंगिक क्रांति की शुरुआत की जिसनेहमारे देश को प्रगति का उदाहरण बना दिया। हमने अप्रचलित परंपराओं और कानूनों कोसमाप्त किया तथा शिक्षा और रोजगार के माध्यम से महिलाओं के लिए बदलाव सुनिश्चितकिया। हमारी संस्थाएं इस आदर्शवाद का बुनियादी ढांचा हैं।

प्यारे देशवासियो,

5. अच्छी से अच्छीविरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है। लोकतंत्र की हमारीसंस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है।इस समय, संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर.अम्बेडकर के उस वक्तव्य का उल्लेख करना उपयुक्त होगा, जोउन्होंने नवंबर, 1949 में संविधान सभा में अपने समापनव्याख्यान में दिया था :

‘‘किसी संविधानका संचालन पूरी तरह संविधान की प्रकृति पर ही निर्भर नहीं होता। संविधान केवलराज्य के विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसे अंगोंको ही प्रदान कर सकता है। इन अंगों का संचालन जिन कारकों पर निर्भर करता है,वह है जनता तथा उसकी इच्छाओं और उसकी राजनीति को साकार रूप देने केलिए उसके द्वारा गठित किए जाने वाले राजनीतिक दल। यह कौन बता सकता है कि भारत कीजनता तथा उनके दल किस तरह आचरण करेंगे’’?

यदि लोकतंत्र कीसंस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता तथा उसके दल गंभीर चिंतन करें।सुधारात्मक उपाय अंदर से आने चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

6. हमारे देश कीउन्नति का आकलन हमारे मूल्यों की ताकत से होगा, परंतु साथ हीयह आर्थिक प्रगति तथा देश के संसाधनों के समतापूर्ण वितरण से भी तय होगी। हमारीअर्थव्यवस्था भविष्य के लिए बहुत आशा बंधाती है। ‘भारत गाथा’के नए अध्याय अभी लिखे जाने हैं। ‘आर्थिकसुधार’ पर कार्य चल रहा है। पिछले दशक के दौरान हमारीउपलब्धि सराहनीय रही है; और यह अत्यंत प्रसन्नता की बात हैकि कुछ गिरावट के बाद हमने 2014-15 में 7.3 प्रतिशत की विकास दर वापस प्राप्त कर ली है। परंतु इससे पहले कि इस विकासका लाभ सबसे धनी लोगों के बैंक खातों में पहुंचे, उसेनिर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। हम एक समावेशी लोकतंत्र तथा एक समावेशीअर्थव्यवस्था हैं; धन-दौलत की इस व्यवस्था में सभी के लिएजगह है। परंतु सबसे पहले उनको मिलना चाहिए जो अभावों के कगार पर कष्ट उठा रहे हैं।हमारी नीतियों को निकट भविष्य में ‘भूख से मुक्ति’ की चुनौती का सामना करने में सक्षम होना चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

7. मनुष्य और प्रकृतिके बीच पारस्परिक संबंधों को सुरक्षित रखना होगा। उदारमना प्रकृति अपवित्र किएजाने पर आपदा बरपाने वाली विध्वंसक शक्ति में बदल सकती है जिसके परिणामस्वरूप बड़ेपैमाने पर जानमाल की हानि होती है। इस समय, जब मैं आपकोसंबोधित कर रहा हूं देश के बहुत से हिस्से बड़ी कठिनाई से बाढ़ की विभीषिका से उबरपा रहे हैं। हमें पीड़ितों के लिए तात्कालिक राहत के साथ ही पानी की कमी और अधिकतादोनों के प्रबंधन का दीर्घकालीन समाधान ढूंढ़ना होगा।

प्यारे देशवासियो :

8. जो देश अपने अतीतके आदर्शवाद को भुला देता है वह अपने भविष्य से कुछ महत्त्वपूर्ण खो बैठता है।विभिन्न पीढ़ियों की आकांक्षाएं आपूर्ति से कहीं अधिक बढ़ने के कारण हमारे शिक्षणसंस्थानों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। परंतु नीचे से ऊपर तक गुणवत्ताका क्या हाल है? हम गुरु शिष्य परंपरा को तर्कसंगत गर्व केसाथ याद करते हैं; तो फिर हमने इन संबंधों के मूल में निहितस्नेह, समर्पण तथा प्रतिबद्धता का परित्याग क्यों कर दिया?गुरु किसी कुम्हार के मुलायम तथा दक्ष हाथों के ही समान शिष्य केभविष्य का निर्माण करता है। विद्यार्थी, श्रद्धा तथाविनम्रता के साथ शिक्षक के ऋण को स्वीकार करता है। समाज, शिक्षकके गुणों तथा उसकी विद्वता को सम्मान तथा मान्यता देता है। क्या आज हमारी शिक्षाप्रणाली में ऐसा हो रहा है? विद्यार्थियों, शिक्षकों और अधिकारियों को रुककर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

9. हमारा लोकतंत्ररचनात्मक है क्योंकि यह बहुलवादी है, परंतु इस विविधता कापोषण सहिष्णुता और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए। स्वार्थी तत्त्व सदियों पुरानीइस पंथनिरपेक्षता को नष्ट करने के प्रयास में सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचातेहैं। लगातार बेहतर होती जा रही प्रौद्योगिकी के द्वारा त्वरित संप्रेषण के इस युगमें हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि कुछ इने-गिने लोगों कीकुटिल चालें हमारी जनता की बुनियादी एकता पर कभी भी हावी न होने पाएं। सरकार औरजनता, दोनों के लिए कानून का शासन परम पावन है परंतु समाज कीरक्षा एक कानून से बड़ी शक्ति द्वारा भी होती है : और वह है मानवता। महात्मा गांधीने कहा था, ‘‘आपको मानवता पर भरोसा नहीं खोना चाहिए। मानवताएक समुद्र है; यदि समुद्र की कुछ बूंदें मैली हो जाएं,तो समुद्र मैला नहीं हो जाता’’।

मित्रो :

10. शांति, मैत्री तथा सहयोग विभिन्न देशों और लोगों को आपस में जोड़ता है। भारतीयउपमहाद्वीप के साझा भविष्य को पहचानते हुए, हमें संयोजकता कोमजबूत करना होगा, संस्थागत क्षमता बढ़ानी होगी तथा क्षेत्रीयसहयोग के विस्तार के लिए आपसी भरोसे को बढ़ाना होगा। जहां हम विश्व भर में अपनेहितों को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं, वहींभारत अपने निकटस्थ पड़ोस में सद्भावना तथा समृद्धि बढ़ाने के लिए भी बढ़-चढ़करकार्य कर रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि बांग्लादेश के साथ लम्बे समय से लंबितसीमा विवाद का अंतत: निपटारा कर दिया गया है।

प्यारे देशवासियो;

11. यद्यपि हम मित्रतामें अपना हाथ स्वेच्छा से आगे बढ़ाते हैं परंतु हम जानबूझकर की जा रही उकसावे कीहरकतों और बिगड़ते सुरक्षा परिवेश के प्रति आंखें नहीं मूंद सकते। भारत, सीमा पार से संचालित होने वाले शातिर आतंकवादी समूहों का निशाना बना हुआहै। हिंसा की भाषा तथा बुराई की राह के अलावा इन आतंकवादियों का न तो कोई धर्म हैऔर न ही वे किसी विचारधारा को मानते हैं। हमारे पड़ोसियों को यह सुनिश्चित करनाचाहिए कि उनके भू-भाग का उपयोग भारत के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतें न कर पाएं।हमारी नीति आतंकवाद को बिल्कुल भी सहन न करने की बनी रहेगी। राज्य की नीति के एकउपकरण के रूप में आतंकवाद का प्रयोग करने के किसी भी प्रयास को हम खारिज करते हैं।हमारी सीमा में घुसपैठ तथा अशांति फैलाने के प्रयासों से कड़ाई से निबटा जाएगा।

12. मैं उन शहीदों कोश्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने भारत की रक्षा में अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदानदिया। मैं अपने सुरक्षा बलों के साहस और वीरता को नमन करता हूं जो हमारे देश कीक्षेत्रीय अखंडता की रक्षा तथा हमारी जनता की हिफाजत के लिए निरंतर चौकसी बनाएरखते हैं। मैं, विशेषकर उन बहादुर नागरिकों की भी सराहनाकरता हूं जिन्होंने अपने जीवन को जोखिम की परवाह न करते हुए बहादुरी के साथ एकदुर्दांत आतंकवादी को पकड़ लिया।

प्यारे देशवासियो;

13. भारत 130 करोड़ नागरिकों, 122 भाषाओं, 1600 बोलियों तथा 7 धर्मों का एक जटिल देश है। इसकीशक्ति, प्रत्यक्ष विरोधाभासों को रचनात्मक सहमतियों के साथमिलाने की अपनी अनोखी क्षमता में निहित है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में यहएक ऐसा देश है जो ‘मजबूत परंतु अदृश्य धागों’ से एक सूत्र में बंधा हुआ है तथा ‘‘उसके ईर्द-गिर्दएक प्राचीन गाथा की मायावी विशेषता व्याप्त है; मानो कोईसम्मोहन उसके मस्तिष्क को वशीभूत किए हुए हो। वह एक मिथक है और एक विचार है,एक सपना है और एक परिकल्पना है, परंतु साथ हीवह एकदम वास्तविक, साकार तथा सर्वव्यापी है।’’

14. हमारे संविधानद्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर, भारत एक जीवंत लोकतंत्र केरूप में विकसित हुआ है। इसकी जड़ें गहरी हैं परंतु पत्तियां मुरझाने लगी हैं। अबनवीकरण का समय है।

15. यदि हमने अभी कदमनहीं उठाए तो क्या सात दशक बाद हमारे उत्तराधिकारी हमें उतने ही सम्मान तथाप्रशंसा के साथ याद कर पाएंगे जैसा हम 1947 में भारतवासियोंके स्वप्न को साकार करने वालों को करते हैं। भले ही उत्तर सहज न हो परंतु प्रश्नतो पूछना ही होगा।

धन्यवाद,
जय हिंद!